पंजाब के मानसा जिले के छोटे से गांव थुथियांवाली के रहने वाले 25 वर्षीय हरप्रीत सिंह सिधु उर्फ ‘हैप्पी’ की कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि मेहनत, धैर्य और स्मार्ट सोच से एक आम किसान भी अपने जीवन की दिशा बदल सकता है। कभी 12 लाख रुपये के कर्ज़ में डूबा यह युवक आज न केवल खुद आत्मनिर्भर है, बल्कि दूसरों को भी कर्ज़ से मुक्त करने के मिशन पर काम कर रहा है।
शुरुआत थी संघर्षों भरी
हरप्रीत का जीवन अचानक तब बदल गया जब उनके बड़े भाई की एक मामूली विवाद में हत्या हो गई। न्याय की लड़ाई लड़ने के चक्कर में पूरा परिवार टूट गया—सोना बेचा, मवेशी बिके, ज़मीन गिरवी रखी गई। 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी और 600 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से टेंट लगाने का काम करना पड़ा।
दैनिक कमाई से कर्ज़ के सूद और दुकानदारों के पैसे चुकाना असंभव था। लेकिन हैप्पी ने हार नहीं मानी।
ऑफ-सीजन खेती से चमकी किस्मत
साल 2017 में, सिर्फ 17 साल की उम्र में हरप्रीत ने परंपरागत खेती जैसे गेहूं और धान की बजाय ऑफ-सीजन सब्जी खेती करने का जोखिम उठाया। सिर्फ 1.3 एकड़ ज़मीन ही बची थी जो गिरवी नहीं थी। 30,000 रुपये उधार लेकर उन्होंने कद्दू, तोरी, मटर और ज़ुकीनी जैसी सब्जियों की ऑफ-सीजन बुवाई की।
परिणाम चौंकाने वाले थे—सिर्फ 10 महीनों में 6 लाख रुपये की कमाई हुई, जिसमें से 5 लाख रुपये का कर्ज़ चुकाया गया। परिवार और गांव वाले हैरान रह गए।

कोविड में भी नहीं रुका हौसला
2020 में जब कोविड-19 की वजह से सब कुछ ठप हो गया, तब हरप्रीत की फसलें सड़ गईं। उन्होंने बार्टर सिस्टम के तहत सब्जियां गेहूं के बदले दे दीं, लेकिन कोई आय नहीं हुई। तब एक मित्र गुरप्यार ने 0.75 एकड़ ज़मीन बिना किराए के दे दी, यहां तक कि डीज़ल का खर्चा भी खुद उठाया। हरप्रीत ने बाद में सब चुका दिया, सिवाय उस दोस्ती के एहसान के।
2023 के बाद सफलता की उड़ान
हरप्रीत ने तीनों एकड़ ज़मीन दोबारा अपने नाम कर ली और 2024 तक 10 मरले का नया पक्का घर बना लिया। वह कहते हैं, “मेरी मां कभी बिना पंखे वाले घर में रहती थीं, आज उनके कमरे में AC है।”
वे बताते हैं, “जब मटर की परंपरागत खेती नवंबर में खत्म हो जाती है, तब मैं टनल में इसकी बुवाई करता हूं। जनवरी की शुरुआत में ही तुड़ाई शुरू हो जाती है और मार्केट में अच्छे दाम मिलते हैं।” मटर से सिर्फ एक एकड़ में उन्होंने ₹2.2 लाख कमाए, जिसमें से ₹50,000 की लागत घटाकर शुद्ध मुनाफा ₹1.7 लाख रहा।
इसके बाद उसी खेत में मार्च तक लोबिया (cowpea) की फसल ली, जिससे ₹7-8 लाख की आय हुई और ₹4-5 लाख का शुद्ध मुनाफा।
स्मार्ट प्लानिंग ही है सफलता की कुंजी
हरप्रीत की खेती योजना साल भर चलती है। वे कहते हैं कि उनकी सब्जी की खेती नवंबर से सितंबर तक चलती है। जून में वह बासमती या PR-126 धान लगाते हैं, जिसे अक्टूबर की शुरुआत तक काट लेते हैं। अक्टूबर-नवंबर में ज़मीन को आराम देकर नई सब्जियों की नर्सरी तैयार करते हैं।
वे बताते हैं, “गेहूं या धान की उपज एक एकड़ में 20 क्विंटल होती है, जबकि सब्जियों से 200-300 क्विंटल मिल सकते हैं। सब्जियां 8-10 गुना ज्यादा मुनाफा देती हैं।”
परिवार बना सबसे बड़ा सहारा
हरप्रीत के माता-पिता – परमजीत कौर और खुशविंदर सिंह – खेती में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। उनके पिता मानसा रेलवे क्रॉसिंग पर सब्जियां बेचते हैं, मां खेतों में मजदूरों के साथ फसल तोड़ने में मदद करती हैं।
हरप्रीत खुद रोज़ 3-4 बार मंडी जाते हैं और ग्राहकों से जुड़ने के लिए गूगल पे और व्हाट्सऐप जैसे डिजिटल साधनों का इस्तेमाल करते हैं।
दूसरों को भी बना रहे आत्मनिर्भर
हरप्रीत का सपना है कि हर सीमांत किसान कर्ज़मुक्त हो। वे कहते हैं, “अगर कोई मेहनत करने को तैयार है, तो मैं उसे 1-2 साल में कर्ज़मुक्त कर सकता हूं।”
उन्होंने खेती की तकनीकें खुद सीखी हैं—पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में किसान मेलों में जाकर। आज वे खुद भी यूट्यूब पर खेती के वीडियो बनाते हैं। उनका iPhone भी मां का गिफ्ट है, जिसे वह “लग्ज़री नहीं, इज़्ज़त का प्रतीक” मानते हैं।
निष्कर्ष: प्रेरणा का प्रतीक हैप्पी
हरप्रीत सिंह सिधु की कहानी हमें यह सिखाती है कि सही सोच, नया नजरिया और दृढ़ संकल्प से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। सीमित संसाधनों से शुरू करके, उन्होंने न केवल अपनी स्थिति बदली बल्कि दूसरों के लिए भी रास्ता खोल दिया।
क्या आप भी तैयार हैं अपने खेतों को हैप्पी की तरह समृद्ध बनाने के लिए?
Leave a Comment